डाक्टर और ज्योतिषी क्यों फेल होते हैं ?
दुनिया को असली साइंस या साइंटिस्ट से हमेशा फायदा हुआ है लेकिन नकली , तथाकथित साइंटिस्ट जो डिग्री , डिप्लोमा या सरकारी साइंटिस्ट की पोस्ट पाकर अपने आपको साइंस का ठेकेदार समझने लगते हैं , उनसे मानवता को ज्यादा खतरा है . इन्हीं लोगों की वजह से नई खोजें होना असंभव हो जाता है .असली साइंटिस्ट के अंदर अज्ञात को जानने और समझने की असीम भूख होती है और वह किसी नई थ्योरी या विचार को नकारने के बजाय उसमें जो भी उपयोगी है उसे पाने की कोशिश करता है .
बी बी सी ने अमेरिकन भारतीय सर्जन अतुल गवांडे का एक बेहद अच्छा लेख प्रकाशित किया है . उसका लिंक मैं नीचे दे रहा हूँ . अतुल जी आज अमरीकी राष्ट्रपति के मेडिकल सलाहकार हैं . वह इस मुकाम पर अपनी इसी साइंटिस्ट वाली दृष्टि की वजह से पहुंचे हैं .
एक सामान्य साइंटिस्ट के अंदर अपनी साइंस की उपलब्धियों पर गर्व का भाव होता है और बड़ी मुश्किल से ही वह विज्ञान की सीमाओं को स्वीकार करता है लेकिन एक वास्तविक वैज्ञानिक अपनी कमियों और विज्ञान की सीमाओं को स्वीकार करता है और उसकी नया जानने की जिज्ञासा उसे नए आविष्कार की ओर ले जाती है . अतुल गवांडे ऐसे ही वैज्ञानिक हैं . उनके लेख से कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं ...
अतुल गवांडे के लेक्चर का विषय था - वाई डू डॉक्टर्स फ़ेल? (डॉक्टर विफल क्यों होते हैं?)
कितने डाक्टर हैं जो अपनी विफलता के बारे में खुलकर बात करते हैं ?
" ....मुझे लगता है कि ऐसे लाखों मामले आए दिन होते हैं - एक व्यक्ति दूसरे के पास शारीरिक या दिमाग़ी परेशानियों को लेकर पहुंचता है. इस उम्मीद में, कि उसे मदद मिलेगी और चिकित्सा विज्ञान का यही मूल ध्येय है– जब एक इंसान दूसरे की मदद मांगता है.
मुझे हमेशा यह बात कचोटती थी कि यह क्षण कितना छोटा, सीमित और विचित्र है. हमारे शरीर में 13 अंग प्रणालियां हैं और ताज़ा गणनाओं की मानें तो इनमें 60 हज़ार से अधिक तरह से गड़बड़ी पैदा हो सकती हैं. हमारा शरीर डरावने ढंग से जटिल, अथाह और आसानी से समझ न आने वाली चीज़ है. हम चमड़े की मांसल बोरियों के नीचे छिपे हुए हैं और हज़ारों साल से यह जानने की कोशिश में हैं कि भीतर क्या चल रहा है.
इसलिए मेरे लिए चिकित्सा विज्ञान की कहानी अपने अधूरे ज्ञान और हुनर से निपटने की कहानी है. "
मेरी नज़र में ज्योतिष में इससे भी ज्यादा परेशानी है .. यहां तो १२ राशियों , ९ ग्रहों और १२ भावों में
पूरी दुनिया देखनी होती है ..इसलिए ज्योतिष विज्ञान भी अधूरे ज्ञान और हुनर से निपटने की कहानी है .
वह आगे लिखते हैं ...
" दो दशक पहले मैंने एक लेख पढ़ा था और मुझे लगता है कि उसके बाद से मैंने जो भी लिखा है और जितना भी शोध किया है वो उससे प्रभावित रहा है. यह लेख दो दार्शनिकों सेम्युएल गोरोविज़ और अलेस्डायर मेकिंटायर ने लिखा था. दोनों ने वर्ष 1976 में ग़लती करने के मानवीय स्वभाव पर लिखा था और हैरानी जताई थी कि कैसे कोई शख़्स जो करना चाहता है, उसमें नाकाम होता है.
मिसाल के लिए, एक मौसम विज्ञानी क्यों यह भविष्यवाणी करने में विफल रहता है कि चक्रवात किस जगह सबसे पहले टकराएगा या डॉक्टर यह क्यों नहीं जान पाए कि मेरे बेटे के शरीर में क्या चल रहा है या फिर उसे सही कर पाए? उनके मुताबिक़ हमारे विफल होने के दो बुनियादी कारण हो सकते हैं. पहला है अनभिज्ञता, यानी हम किसी समस्या या परिस्थिति से जुड़े भौतिक नियमों और स्थितियों के बारे में सीमित जानकारी रखते हैं.
'अयोग्यता' को उन्होंने दूसरा कारण बताया जिसके मुताबिक़ जानकारी तो है पर व्यक्ति या समूह उसका सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाते.
मजे की बात यह है कि यही सारी समस्याएँ ज्योतिष की भविष्यवाणियों के साथ भी हैं , लेकिन ज्योतिष
तो घर की मुर्गी दाल बराबर है क्योंकि उसके साथ कोई संगठन , बैनर और डॉलर नहीं है .
वह आगे लिखते हैं ...
" विज्ञान की चिंता वैश्विक, शाश्वत सत्य का पता लगाना है और ये भी कि शरीर या दुनिया को संचालित करने वाले नियम कैसे काम करते हैं या वो किस तरह व्यवहार करते हैं.
लेकिन जब इस शाश्वत सत्य या नियमों का एक विशिष्ट स्थिति में इस्तेमाल होता है तो परीक्षा इस बात की होती है कि कैसे यह शाश्वत नियम उस विशिष्ट स्थिति में लागू होते हैं.
अनभिज्ञता और अयोग्यता के अलावा एक ''नेसेसरी फॉलिबिलिटी'' (गलती करने की प्रवृत्ति) है जिसके बारे में विज्ञान चुप हो जाता है. वे अपने उस उदाहरण की ओर लौटे कि कोई चक्रवाती तूफान तट से टकराने के बाद क्या करेगा...तट से टकराने के बाद वह कितनी तेजी से आगे बढ़ेगा.
उन्होंने कहा कि जब हम यह जानना चाहते हैं तो हम विज्ञान से उसकी संभावनाओं से ज़्यादा की उम्मीद कर रहे हैं...जो कुछ भी हो रहा है, विज्ञान हमें उसकी सटीक जानकारी दे.
हर चक्रवात प्रकृति के निश्चित नियमों का पालन करता है, पर कोई एक चक्रवात दूसरे चक्रवात के समान नहीं होता.
हर चक्रवात विशिष्ट होता है. इस वजह से हमें किसी एक चक्रवात के बारे में एकदम सटीक जानकारी (परफ़ेक्ट ज्ञान) नहीं हो सकती.
उनका ये मानना था कि ये वैसे ही है, जैसे दुनिया की पूरी स्थितियों और सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं की पूर्ण समझ हो.
दूसरे शब्दों में कहें, तो इसके लिए सर्वज्ञ होने की ज़रूरत है और यह हम हो नहीं सकते. "
तथाकथित वैज्ञानिक व तर्कशास्त्री ज्योतिष के बारे में सर्वज्ञ वाली डिमांड ही करते हैं . ज्योतिष
और ज्योतिषी को चूक जाने का अधिकार नहीं है जबकि अरबों डॉलर खर्च करके भी विज्ञान को चूक
जाने का अधिकार है !
आगे जो अतुल जी तर्क दे रहे हैं वह ज्योतिष पर भी लागू होता है
" तो फिर यह दिलचस्प सवाल उठता है कि हम इससे कैसे निपटें?
अब ऐसा नहीं कि किसी भी चीज़ की भविष्यवाणी असंभव है. कुछ बातें पूरी तरह प्रत्याशित हैं और गोरोविज़ और मेकिंटायर इसके लिए 'आइस क्यूब' को आग में डालने का उदाहरण देते हैं.
एक आइस क्यूब किसी भी अन्य आइस क्यूब की ही तरह होता है और आपको पता है कि अगर आप इसे आग में डालेंगें तो यह पिघल जाएगा.
हमारे लिए प्रश्न यह है कि इंसान चक्रवात की तरह हैं या उन आइस क्यूब्स की तरह?
मेरी समझ से, हमारे समय की कहानी, अयोग्यता से निपटने के संघर्ष की उतनी ही बड़ी कहानी बन गई है जितना बड़ा अज्ञानता से निपटने का संघर्ष था.
सौ साल पहले हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे थे जिसमें हमारा भविष्य पूरी तरह हमारी अज्ञानता में जकड़ा था. पर इस पिछली सदी में बहुत सारे आश्चर्यजनक अविष्कार हुए और तब उलझन केवल इतनी नहीं रही कि पहले से चले आ रहे अज्ञानता के अंतर को कैसे पाटें बल्कि यह कि कैसे ज्ञान का इसमें समावेश करें ताकि 'फिंगर प्रोब' सही उंगली में हो.
इस तथ्य को जानते हुए कि हमारा ज्ञान हमेशा ही सीमित है, हमें अपनी ज़रूरी चूक (नेसेसरी फ़ॉलिबिलिटी) की वास्तविकता की ओर देखने और इससे निपटने का मौका मिलना चाहिए.
मैं समझता हूँ कि आप इस बात से वाकिफ हैं कि अपनी ही दुनिया पर कैमरे का मुंह करना कई बार बहुत ही दुखदायी होता है. गोरोवित्ज़ और मेकिंटाइर ने हमारी विफलताओं को 'अयोग्यता' क्यों करार दिया, उसका भी एक कारण है. ऐसा माना जाता है कि हर बार सही साबित नहीं हो पाने की शर्म के साथ-साथ आत्मग्लानि भी जुड़ी हुई है. इस पर से पर्दा हटने से लोगों में और गुस्सा पैदा हो सकता है. "
और आखिर में वह लिखते हैं ...
" अदृश्य को दृश्य बनाकर ही इसे प्राप्त किया जा सकता है. मैं इसीलिए लिखता हूं, इसीलिए हम विज्ञान का दामन थामे हुए हैं क्योंकि हम इसी तरह से समझ पाएँगे और मेरी समझ में यही चिकित्सा क्षेत्र के भविष्य की कुंजी है."
मेरा आप सभी पाठकों से प्रश्न है कि क्या यही सारे तर्क जो मेडिकल और साइंस पर लागू होते हैं , वही विश्व के सबसे प्राचीन ज्ञान ज्योतिष पर लागू नहीं होंगे . वहां भी ज्योतिषी की योग्यता , पूछने वाले की समझदारी , पूछने वाले की सोच आदि से भविष्यवाणी के सही या गलत होने की उतनी ही संभावना है, जितनी चिकित्सा विज्ञान और चिकित्सक के फेल होने की .
लेकिन वहां हम जाना बंद नहीं करते हैं , इसलिए वहां नए आविष्कार होते हैं और सही होने की संभावना बढ़ती है, जबकि ज्योतिष के विषय में हम दिल दिमाग आदि बंद करके , गाली देकर आगे का रास्ता बंद कर देते हैं . इस तरह कहानी दोहराई जाती रहती है. और तथाकथित वैज्ञानिक बिना इसे अतुल गवांडे की तरह परखे , ढकोसला और बेवकूफी आदि कहकर अपने को महिमा मंडित करते रहते हैं .
इसमें उन पाखंडी ज्योतिषियों का भी योगदान है जो सर्वज्ञ व सब सही कर देने का ठेका लेते हैं . अगर वह भी अतुल गवांडे जी की तरह अपनी और ज्योतिष के ज्ञान की सीमाओं का अहसास भविष्य पूछने वालों को करा सकें तो भविष्य बता सकने की क्षमता रखने वाले इकलौते विज्ञान का खुद का भविष्य और भी अच्छा हो सकेगा और इसकी अचूकता और बढ़ेगी .
बी बी सी लेख का लिंक इधर है ..http://tinyurl.com/ngbvgu7