क्या वैदिक काल में साप्ताहिक व्रतों का महत्व था ?

आज कल लोग सोमवार , शनिवार , मंगलवार आदि का व्रत रखते हैं . ऐसे में यह प्रश्न उठत है क्या यह परम्परा वैदिक काल से है ? इसका उत्तर आगे पढ़िए .

इस प्रश्न का उत्तर ज्योतिष से जुड़ा हुआ है । ज्योतिष काल गणना से जुड़ा है और हिंदुओं के ( अन्य धर्मों के भी) सभी त्यौहार इस से जुड़े हैं ।

वैदिक काल में दिन की गणना नक्षत्र से होती थी जो 27 ( या 28) माने जाते हैं और चन्द्रमा इनमें से हर एक नक्षत्र में लगभग एक दिन रहता है ।

लेकिन नक्षत्र के द्वारा चन्द्रमा के घटने बढ़ने की स्थिति , पूर्णिमा , अमावस्या आदि को बताना मुश्किल था जो कि मुख्यतः चंद्रमा की सूर्य से कोणीय स्थिति पर निर्भर करता है । इसके लिए तिथि का प्रचलन शुरू हुआ । सूर्य और चन्द्रमा अमावस्या को एक साथ अर्थात शून्य कोण पर होते हैं । उसके 15 दिन बाद यह परस्पर विपरीत 180 अंश पर होते हैं जिसे पूर्णिमा कहते हैं । इसप्रकार अमावस्या से अगली अमावस्या तक 30 तिथियां बनी और उनसे एक महीना ।

तो मुख्यतः तिथि और नक्षत्र दिन की खगोलीय स्थिति बताने के लिए वैदिककाल से प्रयोग होते आ रहे हैं। वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का स्वामी 9 ग्रहों को माना गया जिसमें सूर्य से शनि तक के 7 ग्रहों के अलावा अदृश्य ग्रह राहु और केतु भी शामिल हैं । इसमें 12 राशि वाला सिस्टम नहीं था ।

12 राशियों और 7 ग्रहों ( सूर्य से शनि) वाला प्रचलित ज्योतिषीय तंत्र बेबीलोन या मिस्र की देन माना जाता है । व्यापारियों के द्वारा यह पद्धति भारत पहुंची । 27 की जगह 12 और 9 की जगह 7 ग्रहों के प्रयोग से यह पद्धति वैदिक पद्धति से सरल थी पर इसमें सूक्ष्मता और वैज्ञानिकता न हो कर सिर्फ मान्यता या परम्परा ज्यादा थी । इसमें दिनों के नाम सूर्य से शनि पर आधारित 7 दिन थे और 12 महीनों में सूर्य 12 राशियों में रहता था ।

इन दोनों पद्धतियों के मिश्रित पद्धति को आज पंचांग के नाम से जाना जाता है जिसमें नक्षत्र , तिथि वैदिक पद्धति से , राशि ,वार बेबीलोन पद्धति से और योग वार और नक्षत्र के समन्वय से बनते हैं । करण तिथि के आधे हिस्से को कहते हैं । 2100 साल पहले विक्रम संवत के समय से मिश्रित पद्धति चलती आ रही है , उसके पहले वैदिक पद्धति में सिर्फ नक्षत्र व तिथि का प्रयोग होता था ।

इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि वार ( मंगलवार, शनिवार) खगोलीय गणना की जगह मान्यता पर आधारित है । वार आधारित त्यौहार , टोने , टोटके , जुम्मा , संडे आदि सिर्फ आस्था पर केंद्रित हैं । इनका खगोलीय कारण नहीं है।

This is copyrighted by me and it was first published on 19 October 2019 on Quora क्या वैदिक काल में आज के अनुसार सप्ताह होते थे? अगर नहीं तो वारों के हिसाब से रखे गए व्रत और टोटके कैसे पूरे होते होंगे?

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1 thought on “क्या वैदिक काल में साप्ताहिक व्रतों का महत्व था ?”

  1. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी, इसे हमारे साथ साझा करने के लिए धन्यवाद। हम भविष्य में इन लेखों को फिर से पढ़ने की उम्मीद करते हैं।

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