YC Shukla

इंजीनियर-ज्योतिषी-वकील

मेरे ज्योतिषीय लेख

अधिकांश ज्योतिषी शनि के नाम पर क्यों डराते हैं? आपके अनुसार सच्चाई क्या है?

यह मेरे 8 मार्च 2019 को प्रकाशित कोरा उत्तर से लिया गया है:  अधिकांश ज्योतिषी शनि के नाम पर डराते क्यों हैं ? इसकी सच्चाई क्या है ?

मान लीजिए कि दो छात्रों का दाखिला जुलाई में किसी विश्वविद्यालय के किसी कोर्स में हो जाता है। अब कोर्स का सिलेबस तय है, इम्तिहान की तारीख भी तय है और कितने दिन पढ़ना है, वह भी तय है। अब पहला छात्र पूरी प्लानिंग करके पढ़ाई में जुट जाता है लेकिन दूसरा छात्र कहता है कि अभी तो बहुत समय है, क्यों न थोड़ा मौजमस्ती की जाए, यारी दोस्ती, प्रेम मोहब्बत का भी आनंद लिया जाए, पढ़ाई का क्या है, 2 महीने में हो जाएगी।

अब वो दो महीने भी सर पर आ जाते हैं। पहला छात्र अपना कोर्स पूरा कर रिवीजन कर रहा होता है जब दूसरा किताब के पहले पन्ने खोलना शुरू करता है और फिर जब कुछ नहीं समझ में आता है तो अपने जैसे छात्रों की शरण में जाता है। वे बताते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है, पूरी टेक्स्ट बुक कौन पढ़ेगा, बाजार में गाइडबुक मिलती है, आख़िरी हफ्ते में पढ़ लेंगे। आखिर में इम्तिहान को एक हफ्ता रह जाता है और गाइडबुक पढ़ने में भी जब तकलीफ होती है तो हल ये निकाला जाता है कि इसे भी पढ़ेगा कौन, इसे ही एग्जाम हाल में ले जा के लिख देंगे। लेकिन एग्जाम के दिन CCTV कैमरे लग जाते हैं, सेंटर बदल जाता है, उड़नदस्ता आ जाता है और सारी की सारी प्लानिंग फेल हो जाती है। दूसरा छात्र या तो नकल करते पकड़ा जाता है या फेल हो जाता है। पहला छात्र उसी इम्तिहान में टॉपर बन जाता है।

साल के 365 दिन को 30 साल मान लें, आख़िरी के 2 महीने शनि के साढ़ेसाती (7.5 साल ) मान लें, जिसमें आप की जीवन की स्वयं की क्षमताओं का आंकलन शनि विभिन्न तरह की समस्याओं को दे कर करता है। अगर आप लगातार सत्य के साथ खड़े रहे हैं, जिंदगी में कुछ नया सीखते रहे हैं, घमंड और अति आत्मविश्वास से दूर रहे हैं और जीवन की किसी भी समस्या से मुंह चुराने के बजाय उसका डट कर सामना करने को तैयार रहते हैं तो साढ़ेसाती और शनि महादशा / अंतर्दशा भी आपको अंत में गोल्डमेडल दे कर जाएंगे। परन्तु अगर आप आलसी हैं , आख़िरी वक्त पर सो कर उठते हैं कि मैं आख़िरी के 5 मिंनट में तीर मार दूंगा , तो शनि का फेल का तमगा आपको अवश्य मिलेगा और आपकी परिस्थितियां अंत तक आते आते बहुत ही कठिन हो जाएँगी।

अब ये सच्चाई तो सबको पता है तो किसी ज्योतिषी को ये बताने के लिए तो पैसे नहीं मिलेंगे। तो बाजार में बैठे ज्योतिषी ऐसे ही आलसी लोगों के लिए गाइडबुक इस दिलासे के साथ बेच रहे हैं कि पास करा देंगे , नकल माफिया , भ्रष्टाचारी घर बैठे टॉपर बनवाने की दूकान खोले बैठे हैं। इनके पास मेहनती छात्र तो कभी नहीं जाते हैं पर आलसी , आरामतलब लोग और कहाँ जाएंगे। इन्हें ताबीज , रत्न , मंत्र आदि कोई भी जुगाड़ चाहिए शनि से बचने के लिए, लेकिन शनि तो 140 करोड़ किमी दूर बैठा कोई रिश्वत लेता नहीं है, तो ये सब तरफ से धक्के खा के जेब का बचा खुचा पैसा भी जब गवां देते हैं तो ज्योतिष और ज्योतिषी को गाली देते हैं।

कुछ दिन पहले एक मुस्लिम व्यक्ति ने मुझसे शिकायत की कि एक ज्योतिषी ने उसे इम्तिहान में अच्छे नंबर लाने के लिए राजगोपालयंत्र बेचा था और उसको पहनने के बावजूद वो फेल हो गया। मैंने पूछा उस यंत्र के साथ भगवान कृष्ण का मंत्र का जप करने को भी बोला जाता है तो वो बोला ये कैसे हो सकता है मैं तो मुस्लिम हूँ। तो मैंने कहा फिर तो तुम्हें किसी ज्योतिषी के पास तक नहीं जाना चाहिए था । कहने का मतलब यह है कि शॉर्टकट की तलाश में लगे लोग कुछ भी कर सकते हैं और उन्हें कुछ भी डरा धमका कर बेचा जा सकता है।

शनि को मैं ब्रम्हांड का ऑडिटर कहता हूँ जो आपके जीवन का ऑडिट करने और फिर बलपूर्वक आपकी कमियां दूर करने के लिए नियमित समय पर आता रहता है और कोई शॉर्टकट उसके सामने काम नहीं करता है। यह ज्यादातर लोगों को तब समझ में आता है जब बहुत देर चुकी हो चुकी होती है और शनि फेल का तमगा दे कर जा चुका होता है।     


 

क्या काल सर्प दोष वास्तव में होता है , यदि हाँ तो उसका उपाय क्या है ?

आज के युग में जब लोग ज्योतिष (Astrology) और ज्योतिषी (Astrologer) शब्द में फ़र्क करना भूल चुके हैं तो अन्य बातें समझना तो और भी कठिन है। कई लोग अब पूछते हैं क्या आप ज्योतिष हैं और मुझे कहना पड़ता है कि मैं ज्योतिष नहीं हूँ, मैं ज्योतिषी हूँ।

दूसरी बात यह कि ज्योतिष में कोई दोष नहीं होते हैं, ग्रहों के योग होते हैं। अब ये ग्रह योग किसी के लिए दोष और किसी के लिए गुण या फायदे का सबब हो सकते हैं, यह मनुष्य की अपनी सोच पर निर्भर है। पुनः कल तक जो दोष था, वह आज गुण में गिना जा सकता है। उदाहरण के लिए स्त्रियों का पहले पुरुषों की तरह घर से निकलना और काम धंधा करना पहले दोष था (मांगलिक) और अब पैसा कमाना एक गुण है। पहले समुद्र पार जाकर पैसा कमाना दोष था, आजकल उपलब्धि है।

अब आते हैं काल सर्प योग (दोष नहीं) पर। यह सही है कि इस योग का पुराने शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं है कि नए योग और उनका नामकरण नहीं हो सकता है। 27 तरह के नभस योगों में आकृति योग भी शामिल हैं जिनमें छत्र, नौका, माला आदि सम्मिलित हैं।

तो अगर ग्रहों के एक निश्चित पैटर्न में होने को योग कहा जाता है तो कालसर्प योग भी एक पैटर्न है जिसमें राहु-केतु की विभाजन रेखा के एक तरफ सूर्य से शनि तक के ग्रह आ जाते हैं। अगर हर आकृति योग का फल हो सकता है तो कालसर्प योग से जो आकृति बनती है उसका फल क्यों नहीं होगा?

भारत और पाकिस्तान कालसर्प योग के ज्वलंत उदाहरण

यहां भारत की आज़ादी के समय की कुंडली दी हुई है, जिसमें राहु-केतु के बाईं तरफ ही सारे ग्रह एकत्रित हैं। अगर ज्योतिष से अनभिज्ञ व्यक्ति भी इस कुंडली को देखे तो उसे लगेगा जैसे राहु-केतु की एक दीवार है जिसने अन्य ग्रहों को रोक रखा है।

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अब राहु केतु अदृश्य ग्रह हैं तो दीवार भी अदृश्य होगी अर्थात यह रोक मानसिक, पारम्परिक या सांस्कृतिक होगी, भौतिक नहीं होगी। यह मन पर असर करेगी और इसकी वजह से व्यक्ति, देश या संस्था आगे बढ़ने में सकुचाएगा। लेकिन अगर व्यक्ति इस अदृश्य मानसिक, सांस्कृतिक बन्धन को तोड़ दे तो उसके पास बचा हुआ आधा संसार अपने विस्तार के लिए उपलब्ध होगा जो वैसे उपलब्ध नहीं था। ये दीवार राहु या राहु से सम्बंधित ग्रह की दशा या जन्म के 42 साल बाद टूटने की संभावना रहती है।

भारत की कुंडली की शुरुआत शनि महादशा से हुई थी। राहु वृष राशि में है जो शुक्र की राशि है तो भारत ने, 42 वर्ष की अवस्था में, 1989 से 2009 के बीच शुक्र महादशा में राहु ने पारंपरिक, सांस्कृतिक बन्धनों को तोड़ कर विश्व भर में अपना स्थान बनाना शुरू किया। भारत में बदलाव का विरोध नहीं हुआ और यह शांतिपूर्ण तरीके से हो गया।

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यही योग पाकिस्तान की कुंडली में भी है। वहां पर शुरुआत तो राहु महादशा से हुई थी पर वह केवल 2 साल की थी तो कुछ हो नहीं पाया। अब 2009 से 2029 तक पाकिस्तान शुक्र महादशा में है तो पुराने, धार्मिक बन्धनों से आज़ाद होने की जद्दोजहद वहां दिख रही है। राहु, शुक्र पाकिस्तान के लिए मारक हैं तो वहां यही परिवर्तन कष्टकारी है, पर दीवार तो गिरनी ही है 2029 तक। अगर आप इस पर विस्तार से अंगरेजी में पढ़ना चाहें तो यहां पढ़ सकते हैं https://ycshukla.com/2018/12/why-india-is-secular-country-pakistan-is-not/.

निष्कर्ष

काल सर्प योग भी एक आकृति योग है भले ही पराशर होरा शास्त्र में इसका उल्लेख नहीं है। पुराने समय में राहु-केतु जैसे ग्रहों के ऊपर ज्यादा शोध नहीं हो पाया था पर सभ्यता के विकास के साथ राहु-केतु की जानकारी बढ़ी है।

कालसर्प योग के उपाय

जो लोग इस योग के लिए लोगों को उपाय बताते हैं वे कृपया बताएं कि भारत और पाकिस्तान को कौन सा रत्न कितने रत्ती का और कहाँ पहनाया जाए जिससे इनका भाग्य बदल जाए। अगर कोई योग समान रूप से सबको प्रभावित करता है तो उपाय भी सामान होना चाहिए। तो सामान उपाय है अपने कर्मों और विचारधारा को बदलना।

इस योग के होने पर व्यक्ति, देश या संस्था अपने पुरातनपंथी विचारों या दृष्टिकोण की वजह से प्रगति नहीं कर पाता है। परन्तु यदि इन बेड़ियों को तोड़ दिया जाए तो व्यक्ति, संस्था या देश जो इन जंजीरों से जकड़ा होता है वह प्रगति के पथ पर अग्रसर हो जाता है।

भारत ने विश्व में जो स्थान बनाया वह १९८९ से २००९ में शुक्र महादशा में बनाया जो राहु की राशि है। अब पाकिस्तान के साथ भी वही हो रहा है परन्तु वह इस इशारे को समझने में देर कर रहा है।राहु से बनने वाले सभी योग व्यक्ति को परम्परा से बाहर आकर, नए रास्ते पर चलने को प्रेरित करते हैं। जो नए रास्ते पर चलता है वह फायदे में रहता है, जो पुराने ख्यालों व परिवेश में जकड़ा रहता है वह नष्ट हो जाता है, इसीलिए कुछलोग इसे दोष कहने लगते हैं।

काल सर्प योग वाले व्यक्ति को नए लोगों, नए देशों, नई जगहों पर जाने, नई टेक्नोलोजी के प्रयोग से फायदा होता है जबकि उसके रक्तसंबन्धी ज्यादातर अहितकर साबित होते हैं। भारत और पाकिस्तान के नेताओं को देख कर क्या आपको समझ में नहीं आता है ? बेचारे अपने देश को जितना स्वर्ग बनाने की कोशिश करते हैं, देश उतना ही नर्क बनता जा रहा है। जबकि दोनों देशों को जो भी मदद मिलती है वह बाहरी देशों और टेक्नोलोजी से मिलती है और विकास भी तकनीकी की वजह से हो रहा है न कि नेताओं की तथाकथित योजनाओं से।

 ( Above has been used here as Quora Answer )

 

तकदीर रातों रात कैसे बदलती है ?

यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्।

तथा पूर्वकॄतं कर्म कर्तारमनुगच्छत्॥

जिस प्रकार एक बछड़ा हजार गायों के बीच में अपनी माँ को पहचान लेता है, उसी प्रकार पूर्व में किये गए कर्म कअनुसरण करते हैं॥अगर हमारे कर्मों में आसक्ति अधिक हो, जैसे छोटे बछड़े को गाय से होती है तो वह हजार गायों के झुण्ड में भी दूध पीने के लिए अपनी मा को ढूढ़ लेता है ॥ अगर हमारे शुभ कर्म अधिक प्रबल हों तो वे भी हमें ढूढ़ते हुए सौभाग्य के रूप में प्राप्त होते हैं और अगर अशुभ कर्म हों तो वे दुर्भाग्य के रूप में प्राप्त होते हैं.

कुछ दिनों पूर्व मुझे एक फेसबुक पर पोस्ट प्राप्त हुई. इसकी संक्षेप में कहानी यूं है :

एक आठ साल की लड़की अपने परिवार के साथ वडोदरा के रेल पुल के नीचे रहती थी. एक दिन एक मुम्बई जाने वाली ट्रैन उस पुल के सामने रुक जाती है और उसमें बैठा एक प्रौढ़ ऑस्ट्रेलियाई दम्पत्ति उस के नीचे रहने वाले परिवार की फोटो खींच लेता है. ऑस्ट्रेलिया पहुंच कर वह अपने मित्र से उस लड़की को भारत जा कर ढूंढने और मदद करने की इच्छा जताते हैं.

और अगले 15 दिन में यह सब कुछ सम्पन्न भी हो जाता है. पूरा परिवार एक किराए के मकान में पहुँच जाता है, बच्चे स्कूल में और पिता के रोजगार में सहयोग हो जाता है. ऑस्ट्रेलियाई दंपत्ति उनके २ साल का खर्च उठाने को तैयार हो जाते हैं, हर महीने बैंक में पैसा भेजकर.

रातों रात, बिना किसी उम्मीद और प्रयास के दूर बैठे अजनबी देश के व्यक्ति से तकदीर बदलने को और क्या कहेंगे ?

Source & Full Story: https://www.facebook.com/chrisbray.net/media_set…


उपेक्षित ज्योतिष से बड़ी बड़ी उम्मीदें क्योँ ?

मेरे कुछ साथियोँ का कहना है कि मेरे प्रिय विषय कम्प्यूटर, इंजीनियरिंग, तकनीकी, प्रबंधन और क़ानून भी हैं, फिर मैंने इंजीनियर के व्यवसाय को छोड़कर ज्योतिष को ही क्यों चुना ? इसका उत्तर प्रस्तुत लेख में है.

आज शिक्षा के सभी क्षेत्रों में नई पीढ़ी के लाखों व्यक्ति हरेक स्तर पर देश व विदेश में पढ़ व शोध कर रहे हैं। लेकिन ज्योतिष 17वीं शताब्दी में जहां रुका था, आज भी वहीं रुका है, जबकि हमारे देश में ज्योतिष से अच्छी रिसर्च की परम्परा किसी शास्त्र के पास नहीं थी।

17वीं शताब्दी में अंग्रेजो के आने तक, भारतवर्ष का सबसे बड़ा निर्यात ज्ञान व विज्ञान और उसमें भी सबसे ज्यादा सिर्फ ज्योतिष ही था, जिसकी पूरी दुनिया दीवानी थी। अरब देशो में इस्लाम धर्म का चलन होने के बावजूद, भारत में अरब से हज़ारो छात्र सिर्फ ज्योतिष सीखने ही आते थे। इस विज्ञान से प्रभावित होकर मुग़ल बादशाहों ने अपने राजकुमारों को संस्कृत व ज्योतिष की शिक्षा भी दिलवाई, जिनमे दाराशिकोह का नाम उनके संस्कृत ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है।

केरल से सीखा हुआ प्रश्न ज्योतिष शास्त्र अरब देशों से होता हुआ ताजिकिस्तान पहुंचा. उत्तर भारत में हम तो उसे भूल ही गए थे पर जब हमने मुग़ल सेनापतियो को युद्ध में इस शास्त्र को प्रयोग करते देखा तो हमने उसे पुन: सीखा और उसे ताजिक शास्त्र का नाम दिया। इस शास्त्र में ग्रहों के योगों के नाम आज भी ताजिक भाषा में हैं और ताजिक शास्त्र का प्रयोग वर्षफल निकालने में आज भी होता है।

प्राचीन भारत में ज्योतिष इसी लिए समृद्ध था क्योंकि उस समय का सबसे मेधावी छात्र ज्योतिष ही पढ़ता था. नालंदा और तक्षशिला में प्रवेश परीक्षा देने भारत के प्रदेशों से ही नहीं अपितु अरब देशो से भी लोग वैसे ही आते थे जैसे अब GRE व TOEFL भारत के छात्र देते हैं.

इन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त ज्योतिषियों को राजाओं व बादशाहों के दरबार में जीवन पर्यन्त सम्मानजनक जीविका की गारंटी थी। ऐसे विद्वानों द्वारा ही ज्योतिष पर नित नए ग्रन्थ लिखने, शास्त्रार्थ करने से ज्योतिष शास्त्र ने उत्तरोतर प्रगति की.

जरा सोचिये यदि आज सिर्फ़ 17वीं सदी तक के विज्ञान का ही प्रयोग किया जाए तो हमारी दुनिया कैसी होगी ? विज्ञान से

हमें नित नये चमत्कार इसलिए मिल रहे हैं क्यों कि उसमें खरबों डालर का निवेश हर साल दुनिया भर में किया जाता है।

ज्योतिष में अगर उसका 0.01 % प्रतिशत निवेश ही कर दिया जाए तो विज्ञान से 100 गुना फल तो मिल ही सकता है

बल्कि समाज व पर्यावरण का संतुलन भी संभव हो सकता है।

अफ़सोस की बात है तो यह है कि आज इस शास्त्र से जीविका चलाने वाले 17 वीं शताब्दी तक किये गए शोध से ही काम चला रहे हैं .पिछले साठ पैसठ वर्षो में ज्योतिष का ठेका सरकार ने संस्कृत विश्वविद्यालयों को देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली है। इन विश्वविद्यालयो के शिक्षको के लिए यह नौकरी पहले दिन से ही पेंशन की तरह है। कई जगह बिहार में कुछ विद्यालयों में संस्कृत शिक्षकों की संख्या छात्रों से ज्यादा है, यह मैंने खुद देखा।

दूसरा कारण यह है कि आज किसी छात्र को मेधावी तभी माना जाता है जब वह पहले इंजीनियरिंग, तकनीकी, प्रबंधन आदि व्यावसायिक कोर्स पढ़े, बाद में भले ही वह आईएस,आईपीएस बने या अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, चेतन भगत, राम गोपाल वर्मा, हर्षा भोगले, श्रीकांत की तरह अन्य व्यवसायों में झंडे गाड़े।

तो संस्कृत व ज्योतिष में शुरू से मेधावी छात्र आते ही नहीं और जो आ जाते हैं, उन्हें मेधावी शिक्षक न मिलने से वे तोता रटंत बन कर निकलते हैं और उन्हें कोई मेधावी मानता नहीं।

ऐसे में मुझे आज के मेधावी तकनीकी व प्रबंधन के स्नातक जो उच्च पदों पर सुशोभित हैं उनकी बुद्धि पर तरस आता है, जब वे सबके सामने ज्योतिष की बुराई करते मिलते हैं। और व्यक्तिगत संकट के समय यही लोग घटिया से घटिया ज्योतिषी की शरण में जाकर लाल किताब के टोने टोटके न सिर्फ करते हैं बल्कि टीवी चैनेल पर इनके प्रोग्राम भी पैसे के चक्कर में चलाते हैं। बाद में ज्योतिषी की भविष्यवाणी गलत होने की जोर जोर से चर्चा भी करते हैं। कोई इनसे यह नहीं पूछता है कि आप वहां गए क्यों थे?

अब अगर कोई भी गाय या भैंस पालेगा ही नहीं तो शुद्ध दूध की उम्मीद रखना बेवकूफी ही है। अगर आपको स्वर्ण की पहचान ही नहीं है तो आपको कोई कुछ भी पकड़ा कर चला जाएगा। इतने काबिल हिन्दी चैनलो के ज्ञानी पत्रकार हर साल दो बार पड़ने वाले सूर्य व् चन्द्र ग्रहण के समय टी आर पी बढाने के लिए ज्योतिष के अक्षम या सक्षम होने पर बहस आयोजित करते हैं। गलती से इन वादविवाद में यदि श्री के एन राव जैसे ज्योतिषी आ जाते हैं तो उन्हें बोलने नहीं दिया जाता है और बहस को ग्रहण समाप्त होते ही बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे ही समाप्त कर दिया जाता है। अंग्रेजी टीवी चैनलों के लिए तो यह कोई विषय ही नहीं है।

लेकिन इनमें से एक भी पत्रकार को कभी भी यह नहीं लगा कि चलो मैं ही एक पत्रकार के नजरिये से ज्योतिष पढूं और फिर सबको अपना अनुभव बताऊं और चैनल पर बुलाए गए ज्योतिषियों से उच्च स्तरीय सवाल पूछूं।

जब हम ज्योतिष को कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं तो फिर ज्योतिष से इतनी उम्मीदें क्यों? याद रखिये किसी भी विज्ञान को हमारी जरूरत नहीं है, हमें अपने भले के लिए सभी तरह के विज्ञान और शास्त्र की जरूरत है। जबतक राव साहब की तरह बड़ी संख्या में अन्य व्यवसाय में पारंगत व्यक्ति ज्योतिष को सीखकर उसमें कुछ नया नहीं जोड़ेंगे, तब तक आपको 17वीं सदी के आउट ऑफ़ डेट ज्योतिष से ही काम चलाना पडेगा।


बाप बड़ा ना भैय्या, सबसे बड़ा रुपैय्या

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आज का युग आर्थिक युग है जिसमें ज्यादातर मुद्दे पैसे से शुरू होकर पैसे पर ही समाप्त होते हैं. पिछले कई महीनों से मेरे अनेक मित्रों ने अनुरोध किया है कि मैं धन के निवेश पर ज्योतिषीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करूं.

परन्तु धन के निवेश पर चर्चा करने से पहले, ज्योतिष शास्त्र धन के बारे में क्या राय रखता है, यह चर्चा अत्यंत आवश्यक है. आज मैं इस विषय पर कुछ विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ. धन के निवेश से जुड़ा पहलू अगले भाग में प्रस्तुत किया जाएगा.

ज्योतिष कुण्डली में धन भाव

भारतीय ज्योतिष से परिचित लोग यह जानते हैं कि कुंडली के दूसरे भाव को धन भाव कहा जाता है. लेकिन इसी भाव को कुटुम्ब,वाणी और मृत्यु (मारक) भाव भी कहा जाता है. मेरे एक मित्र ने टोका कि यह कैसे संभव है कि धन, कुटुंब, मृत्यु और वाणी जैसे मुद्दे एक साथ जुड़े हों.

मैंने उन्हें उत्तर दिया कि असल में धन भाव की व्याख्या सिर्फ चल संपत्ति के रूप में करने की वजह से यह भ्रम पैदा हुआ है. असलियत में दूसरे भाव का एक ही विषय है : संसाधन, जिसे हम संक्षेप में धन भाव कहते है. मानव जीवन के लिए जिन संसाधनों की अनिवार्य आवश्यकता होती है, वह दूसरे भाव के अंतर्गत आते हैं.

मानव जीवन की शुरुआत से अंत तक सबसे महत्वपूर्ण संसाधन (Resource) परिवार होता है। यह आदि मानव युग में, जब धन का अता पता भी नहीं था, तब भी अस्तित्व में था. इस परिवार रूपी संसाधन को चलाए रखने के लिए जिस अन्य संसाधन की आवश्यकता पडी उसे धन कहा गया.

भारतीय दर्शन धन को सजीव व निर्जीव में बांटता है. सजीव धन अपने को स्वयं बढ़ा सकता है जबकि निर्जीव धन को सजीव धन की मदद से ही बढाया जा सकता है. सजीव धन में हमारे सगे सम्बन्धी, मित्र, पड़ोसी,परिचित आदि आते हैं. इसके अलावा हमारे पालतू पशु व पक्षी भी सजीव धन होते हैं. पेड़,पौधे आदि अर्द्ध-सजीव श्रेणी में आते हैं. इन सबको छोड़कर जमीन जायदाद जिसमें चल व अचल दोनों संपत्ति शामिल हैं 4, वे सब निर्जीव धन में आती हैं.

अब हम समझ सकते हैं कि कुंडली का दूसरा भाव सिर्फ धन भाव न हो कर मूलत: संसाधन भाव है. अब हम इससे जुड़े एक अन्य पहलू पर नज़र डालते हैं. इसी भाव में वाणी भी शामिल है.

वाणी का अर्थ यहाँ पर बोलचाल की भाषा शैली से है. हम सब जानते हैं कि सिर्फ मनुष्यों के पास ही विकसित बोलियाँ और भाषाएँ हैं, जानवरों के पास इनका अभाव है इसलिए धन सिर्फ आदमी के ही पास है. 

आपकी भाषा का आपके पास उपलब्ध संसाधनों से सीधा सम्बन्ध है. ज्यादातर प्रतिष्ठित व्यक्तियों की भाषा बड़ी शालीन व शिष्ट होती है जबकि गरीबों की भाषा ज्यादातर अशिष्ट व अपरिमार्जित होती है. पढ़े लिखे लोगों की भाषा पर पकड अच्छी होती है और वे ज्यादा धन वाली नौकरियाँ व व्यवसाय कर सकते हैं. अगर दो लोग एक सी दुकान में एक सा सामान बेच रहे हों तो लोग शालीनता से पेश आने वाले दुकानदार के यहाँ जाना पसंद करते हैं. और अपनी वाणी के बल पर वह दुकानदार ज्यादा धन व संसाधन अर्जित कर सकता है.

द्रौपदी की कटु वाणी को महाभारत प्रारम्भ होने का एक कारण माना जाता है. अत: संसाधनों (जिसमें परिवार व धन सब कुछ निहित है) की हानि या लाभ होना बहुत कुछ आपकी वाणी पर भी निर्भर है. ज्यादा भाषाएँ जानने से आप अपने व्यवसाय को और अपने धन को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि धन, कुटुंब व वाणी परस्पर जुड़े हुए हैं. अब हम इस भाव के मारक होने या मृत्यु से सम्बन्ध को समझते हैं. जैसा कि ऊपर बताया गया है कि संसाधन मानव जीवन के लिए अति आवश्यक हैं. पुन: कुदरत में संसाधन सीमित हैं अत: संसाधन अर्जित करने और उन्हें उपयोग होने तक सुरक्षित रखना आसान नहीं है और इसके लिए भी संसाधन चाहिए. चार्ल्स डार्विन की Survival of Fittest Theory के तहत संसाधन अर्जित करने और सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष होना स्वाभाविक है और संघर्ष में मृत्यु होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.

एक बात और भी ध्यान देने योग्य है. जीवित व अर्द्ध जीवित संसाधनों की प्राकृतिक मृत्यु भी निश्चित है. निर्जीव धन की कीमत हमेशा एक जीवित व्यक्ति के लिए ही होती है. अगर सभी मनुष्यों की एक साथ मृत्यु हो जाए तो विश्व भर के अर्जित साधनों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. इस तरह से मृत्यु या कष्ट होना संसाधन रूपी सिक्के का दूसरा पहलू है.

यहाँ से कुंडली का दूसरा भाव एक गंभीर चेतावनी जारी करता है कि संसाधनों को ज्यादा या जल्दी से जल्दी इकठ्ठा करना मृत्यु या मृत्युतुल्य संकट को आमंत्रण देना है. अगर आप रातों रात बहुत सा धन या संपत्ति पा जाते हैं तो आपको बहुत खुश होने की जगह सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि किसी न किसी रूप में कष्ट रूपी दूसरे पहलू से आपका सामना होना तय है. युद्ध व अपराध द्वारा अर्जित त्वरित धन के साथ मृत्यु अनिवार्य रूप से जुडती है.

बात जब संसाधनों की हो तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि सबसे बड़ा संसाधन (Resource or asset ) क्या है ? इसका उत्तर सरल है : मानव शरीर से बड़ा संसाधन कोई नहीं है. संसाधनों का वरीयता क्रम निम्नवत है :

सजीव धन

प्रथम श्रेणी

१. हमारा शरीर २. हमारा परिवार ( माता, पिता, पति, पत्नी, संतान, भाई, बहन)  ३. सगे संबंधी व अभिन्न मित्र, गुरु आदि .

द्वितीय श्रेणी

१. पालतू जानवर जैसे कुत्ता २. दुधारू जानवर ३. सवारी वाले जानवर जैसे बैल, घोड़ा  ४. अन्य

अर्द्ध सजीव धन

१. फल दार पेड़ पौधे २. इमारती लकड़ी वाले पेड़ ३. अन्य पेड़ व फसलें

निर्जीव धन

प्रथम श्रेणी

१. घर २. जल स्रोत जैसे नदी, झील कुआं ३. उपजाऊ जमीन ४. खदान ५. जंगल ६. पहाड़ ७. समुद्र तट

द्वितीय श्रेणी

१. धातुएं ( लोहा,सोना, चांदी, ताम्बा आदि) २. रत्न ३. सरकारी मुद्रा ४. शेयर, हुंडी, एफ डी आदि

आप देख सकते हैं कि प्रथम श्रेणी सजीव यानि मानव संसाधन अन्य सभी श्रेणी के संसाधनों को नियंत्रित करता है इसलिए वह सर्वोपरि है. उसमें भी सबसे पहले व्यक्ति स्वयं आता है फिर उसके रक्त संबंधी फिर अन्य परिचित. अन्य सजीव में जानवर है क्योंकि वह चल सकते हैं और अपने को बढ़ा भी सकते हैं. अर्ध सजीव भी स्वत: अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं.

निर्जीव धन अपने आप में निष्क्रिय होते हैं और उनकी मूल्यवृद्धि सजीव मनुष्य के लिए उनकी उपयोगिता पर निर्भर है और वह समय समय पर बदलती रहती है.

ऊपर लिखे सभी तरह के धन सभी मनुष्यों के पास नहीं होते हैं लेकिन अगर हम एक देश के स्तर पर सोचें तो हम धन या संसाधन वाली बात अच्छे से समझ सकते हैं. उदाहरण के लिए भारत देश के कुल संसाधन १५ अगस्त १९४७ में कितने थे और अब कितने हैं. तब हमारे सजीव धन में मनुष्य कम थे लेकिन पशु पक्षी, नदी, तालाब आदि ज्यादा थे. ६५ वर्ष बाद हमारे पास आदमी रूपी सजीव धन बहुत बढ़ गया और बहुत सारी निर्जीव संपत्ति भी इकठ्ठी हो गयी है लेकिन पर्यावरण रूपी सजीव व अर्ध सजीव धन गायब हो गया है.

इसी तरह हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता के समय भी हमारे पास कोयला व धातुएं थीं लेकिन वे भूमिगत थीं पर हमारे उपयोग में नहीं थीं. आज भूमिगत वस्तुएं निकलकर हमारे उपयोग में आ रही हैं लेकिन वास्तविकता में हमारी संपत्ति उतनी ही है जितनी पहले थी.

जिस तरह ऊर्जा पैदा नहीं की जा सकती है, सिर्फ उसका रूप परिवर्तन किया जा सकता है उसी तरह मनुष्य के कुल संसाधन जन्म से मृत्यु तक लगभग स्थिर रहते हैं और सिर्फ उनका सजीव व निर्जीव में लगातार रूपांतरण होता रहता है.

अब मैं इसको अनेक उदाहरणों से स्पष्ट करता हूँ. पैदा होने के समय हमारे पास सिर्फ हमारा स्वस्थ शरीर होता है और एक भी अन्य प्रकार की संपत्ति नहीं होती है लेकिन 100 साल की आयु में मरने के समय हमारे पास तरह तरह की संपत्ति होती है पर हमारी मूल संपत्ति, स्वस्थ शरीर नष्ट हो चुका होता है.

इस तरह से यह साबित होता है कि सर्वश्रेष्ठ संपत्ति या संसाधन केवल हमारा स्वस्थ शरीर ही है जैसा की तुलसीदास जी ने भी कहा है ” पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख हो घर में माया “. व्यवसाय के द्वारा काया यानी शरीर को खर्च करके माया हासिल की जाती है और अस्पताल में जाकर थोड़ी माया खर्च करके कुछ काया स्वास्थ्य के रूप में वापस भी मिल जाती है.

जीवन बीमा कम्पनियां भी आपकी काया को नुक्सान होने पर कुछ माया देने का वायदा करती है. सजीव काया का दूसरी सजीव काया या निर्जीव धन (माया) में परिवर्तन लगातार होता रहता है लेकिन पेन्डुलम की तरह इनकी अधिकतम सीमाएं भी तय हैं.

पुराने ज़माने में अपने माता पिता के साथ बेरोजगार रहने वाले पुत्र के पास जब निर्जीव धन नहीं होता था तो वह माता पिता रूपी सजीव धन को छोड़कर दूर कहीं व्यापार करने चला जाता था. कुछ समय बाद जब उसके पास काफी निर्जीव धन एकत्रित हो जाता था तो उसे घर के सजीव धन की याद आने लगती थी और वह वापस अपने माँ बाप के पास आ जाता था. फिर उसकी शादी कर दी जाती थी और इस सब के साथ कुछ ही समय में उसका निर्जीव धन समाप्त हो जाता था और एक बार फिर वह माँ, बाप और पत्नी रूपी सजीव धनों का त्याग करके फिर से निर्जीव धन कमाने चल देता था.

अगली बार फिर धन जमा होने पर वह वापस पहुँचने पर देखता कि उसके घर में एक संतान भी आ गयी है और अब चार सजीव धन उसके कमाए निर्जीव धन को समाप्त कर देंगे. इस तरह समय के बीतने के साथ संतानों की संख्या बढ़ती जाती है, माँ, बाप की मृत्यु हो जाती है और व्यक्ति व उसकी पत्नी बूढ़े हो जाते हैं इस तरह समय के साथ सजीव से सजीव और निर्जीव में परिवर्तन की कहानी चलती रहती है.

यह कहानी गाँव और शहर में साफ़ दिखती है. शहरों में ज्यादातर लोगों के संताने कम होती हैं और संपत्ति ज्यादा होती है. गाँव में या गरीबों में संताने ज्यादा होती हैं लेकिन पैसे व अन्य संपत्ति की कमी होती है. यही अंतर अमीर और गरीब देशों की आबादी में भी दिखता है.

एक बेहद अमीर व्यक्ति के संतान न होना या अनेक संतानों के साथ झोपडपट्टी में रहने वाले गरीब लोग, दोनों ही स्थितियां दयनीय हैं इसलिए प्राकृतिक संतुलन के लिए सजीव व निर्जीव धन के बीच एक सही अनुपात होना आवश्यक है, इसलिए सजीव व निर्जीव धन के बीच रूपांतरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है.

सजीव धन की हानि मृत्यु से ही होती है और उसकी क्षतिपूर्ति ज्यादातर निर्जीव धन से ही की जाती है जैसे बीमा धन, वसीयत या सरकार द्वारा दुर्घटना सहायता राशि मिलना आदि. कभी कभी इसकी सजीव क्षतिपूर्ति भी होती है जैसे किसी की मृत्यु के बाद घर में शादी हो कर बहू आना या संतान होना. इन घटनाओं का क्रम आगे या पीछे कुछ भी हो सकता है और मृत्यु का अर्थ पूर्ण मृत्यु के अलावा मृत्युतुल्य कष्ट या अपमान, असुविधा आदि व्यापक अर्थों में भी किया जाना चाहिए.

अक्सर सामान्य से अधिक दहेज़ रूपी धन शादी में मिलने के बाद घर में लड़ाई झगडा, कचहरी, जेल आदि इसीलिए आरम्भ हो जाता है. असामान्य धन का दूसरा पहलू (मारक) असामान्य कष्ट ही हो सकता है जबकि ३० दिन का सामान्य कष्ट (नौकरी) अंत में सामान्य धन (वेतन) में परिवर्तित होता है.

मायापति और माया

सजीव और निर्जीव धन में मूल अंतर को मायापति और माया के रूप में भी समझ सकते हैं जिसमें मायापति अर्थात परमात्मा का एक अंश आत्मा (सजीव) हो और माया जिससे आत्मा घिरी रहती है और जिसे हम शरीर कहते हैं (निर्जीव). मनुष्य जिन्दगी भर पेंडुलम की तरह इन दो सिरों के बीच घूमता रहता है. पेंडुलम का एक सिरा मायापति के यानी ईश्वर के पास है और दूसरा सिरा अकूत माया का है.

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माया के रहस्य को दिए हुए चित्र से समझाया जा सकता है. आदमी एक पेंडुलम की तरह पहले ईश्वर की सृष्टि, माया का स्वामी बनने की कोशिश करता है. यह कोशिश रावण, हिरण्यकश्यप, सिकंदर, नेपोलियन व हिटलर जैसे लोग कर चुके हैं। लेकिन माया उसे जोर का झटका देकर, अपने वास्तविक स्वामी ईश्वर की शरण में भेज देती है, जिसके कारण या तो आदमी शरीर ही त्याग देता है केवल आत्मा बचती है जो परमात्मा में विलीन हो जाती है। या रातों रात सन्यासी बन जाता है जैसे राजा भर्तृहरि या तुलसीदास.

कुछ लोग माया को इतना नकारते हैं कि ईश्वर के सिवाए उन्हें कुछ सूझता ही नहीं है, उन्हें भी ईश्वर झटके के साथ वापस माया की तरफ भेज देता है.

स्वामी प्रभुपाद (इस्कान मंदिर), सत्य साईँ बाबा (आंध्रप्रदेश वाले), कृपालु जी आदि, घर बार छोड़ कर निकले थे ईश्वर की खोज में, लेकिन 50 बरस बाद इन सभी के पास अकूत संपत्ति हो गयी. सुदामा गए तो थे कृष्ण के पास फ़कीर बनकर लेकिन लौटे तो माया लेकर. पोप, शंकराचार्य व अन्य साधू संतों के महंथ बनकर माया में लिप्त हो जाना इस का उदाहरण है.

जब तक आपने शरीर धारण कर रखा है तब तक आप माया से पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं और जब तक आप जीवित हैं तब तक आप आत्मा से भी पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं । एक की कीमत पर आप जब दूसरे का ज्यादा ध्यान रखेंगे तो आप को शांति मिलना असंभव है।

इतने सारे उदाहरणों से स्पष्ट है कि लाख प्रयत्नों के बावजूद, धन हमें मिल ही जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है.और मिलने के बाद धन आपके काम आ जाएगा, ये तो और दूर की कौड़ी है। वस्तुत: यह ईश्वर की माया है और इसे चंचला यूंही नहीं कहा गया है.

फिर सही विकल्प क्या है ? उत्तर चित्र में दिखाया गया है. आदमी रूपी पेंडुलम की शांत अवस्था मध्य में है. अर्थात जीवन में उपलब्ध कुल समय का आधा माया प्राप्त करने मेँ लगाना आवश्यक है जिसमें शरीर की सफ़ाई, भोजन व व्यवसाय शामिल हैं । शेष 12 घंटे आत्मा व मन की संतुष्टि के लिए होने चाहिए जिसमें नींद, ज्ञान-विज्ञान, खेलकूद, मनोरंजन, अध्यात्म, समाजसेवा, परोपकार आदि शामिल हैं ।

न तो संसार से भागिए और न ही संसार से चिपकिये, कबीरदासजी की तरह रहिये, यही धन का निचोड़ है.

आप चाहें तो किशोर कुमार के गाने से भी सीख ले सकते हैं :

“ये समझो और समझाओ थोड़ी में मौज मनाओ
दाल-रोटी खाओ प्रभु के गुन गाओ
अजी लालच में ना आओ ना दिल का चैन गँवाओ
दाल-रोटी खाओ …

तन पे लंगोटी पेट में रोटी, सोने को एक खटिया
मतलब तो है नींद से चाहे बढ़िया हो या घटिया
राधेश्याम सीता-राम
नफ़रत को दूर हटाओ और सबको गले लगाओ
दाल-रोटी खाओ …

चाँदी की थाली वाले को क्या भूख लगे है ज़्यादा)
क्यों ना खा ले फिर आपस में बाँट के आधा-आधा
राधे\-श्याम सीता-राम \-२
भूखे की भूख मिटाओ और सबको गले लगाओ
दाल\-रोटी खाओ .”


मेरी तकदीर कब बदलेगी ?

अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि मेरी तकदीर कब बदलेगी ? ज़ाहिर सी बात है कि लोग तकदीर अच्छी कब होगी, यह जानना चाहते हैं. कुछ लोग यह पूछते हैं कि क्या करने से तकदीर करवट ले सकती है. आज का लेख विस्तार में यह बताएगा कि ” आखिर तकदीर कब बदलती है ? ” लेकिन याद रखिये तकदीर बदलने का मतलब बुरे से अच्छा और अच्छे से बुरा दोनोँ से ही है. ज्योतिष विज्ञान की भाग्य परिवर्तन पर क्या राय है, मैं उसकी जानकारी आप को दे रहा हूँ.

 
भारतीय ज्योतिष के तीन आधार स्तम्भ हैं : देश, काल व पात्र. अंग्रेजी में कहें तो 3 Ps ( Place, Period & Person ) से मिलकर एक तिकोन की रचना होती है जिसके अंतर्गत आने वाला एरिया आपकी तकदीर के क्षेत्रफल को तय करते हैं. अब मैं तकदीर के तिकोने खेत का हिसाब किताब बताता हूँ.
 
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जैसा कि आप चित्र में देख सकते हैं, तकदीर के त्रिभुज की तीन भुजाएं हैं :

1. देश या स्थान ( Place)

यह तकदीर तय करने की पहली भुजा है. इसके छोटे या बड़े होने से आपकी तकदीर का क्षेत्रफल कम या ज्यादा हो सकता है. स्थान में कई अर्थ शामिल हैं जो प्याज की परतोँ की तरह लागू होते है. इसमें इकाई के अंक पर आपका रहने, सोने या आफिस का कमरा आता है जो निजी रूप में आपके काम आता है.  दहाई के अंक पर पूरे मकान, फ़्लैट या आफिस का साइज व लोकेशन आती है. सैकड़े के स्थान पर मुहल्ला व हजार के स्थान पर शहर आता है. दस हजारवें पर राज्य व लाखवें स्थान पर देश या राष्ट्र का परिवर्तन आता है.

इस तरह से हम समझ सकते हैं कि स्थान परिवर्तन का फल तकदीर पर अवश्य पड़ता है भले ही वह 1 के बराबर हो या लाख के बराबर. पुन: यह परिवर्तन लाभ या हानि दोनोँ ही कराने में समर्थ है. तो विदेश जाने से आपकी हैसियत बहुत ज्यादा बन सकती है या बहुत कम भी हो सकती है.

2. पात्र या Entity

तकदीर की दूसरी भुजा सजीव व्यक्तियोँ या सजीव व्यक्तियोँ द्वारा संचालित संस्थाओँ से संबधित है. इसमें भी प्याज की परतोँ की तरह छोटे और बड़े लेवल हैं. इसमें सबसे बड़ी परत या लाख वाला अंक आप स्वयं हैं और इसमें आपका स्वास्थ्य, शारीरिक व मानसिक क्षमताएं, मानसिक सोच आदि शामिल हैं. दस हजार की परत पर आपके घर में ज्यादातर स्थायी निवास करने वाले सदस्य हैं, हजार के लेवल पर आपके रिश्तेदार, परिचित, मित्र, पड़ोसी आदि होते हैं. सैकड़े के अंक पर आपके व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति, दहाई के अंक पर नौकर, बहुत दूर के रिश्तेदार तथा इकाई के अंक पर अजनबी व्यक्ति आते हैं.

3. काल या Time Period

तकदीर की तीसरी भुजा काल, समय या युग है. यह भुजा हमारे नियंत्रण से बाहर है और बेहतरी इसी में है कि इसके हिसाब से चला जाए. ऊपर के चित्र में आप देख सकते हैं कि यह भुजा त्रिभुज का आधार है. इसका अर्थ है कि बाकी दोनोँ भुजाएं देश व पात्र भी इसके आधीन हैं.

समय की परतें अंतहीन हैं और इनका प्रत्येक भाग परमाणु की तरह है जो चाहे तो अनंत समय तक निष्क्रिय रहे और जब चाहे तो परमाणु विस्फोट कर सब कुछ अस्त व्यस्त कर दे. आदि शंकराचार्य ने काल की महिमा का वर्णन इस तरह किया है : ” मा कुरु धन जन यौवन गर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वम्” जिसका अर्थ है कि धनबल, जनबल ( Acquaintances) और यौवन का घमंड उचित नहीं है क्योँकि काल या समय इन्हें पलक झपकते नष्ट कर सकता है.

तकदीर के त्रिभुज की तीन भुजाएं हैं. इसका आधार समय अदृश्य है, जबकि पात्र सजीव और स्थान निर्जीव है. इस प्रकार, सबसे ज्यादा समय ताकतवर है और यह तकदीर की बाकी दो भुजाओं स्थान व पात्र को भी क्षण में बदल सकता है जबकि समय को बाकी दो भुजाएं नहीं बदल सकती हैं.

तकदीर कैसे बदल सकती है ?

1 – काल द्वारा

ऊपर के विमर्श से यह स्पष्ट है कि तकदीर का मुख्य आधार काल या समय है. मैंने एक अन्य लेख में स्पष्ट किया है कि समय की प्रवृत्ति चक्रीय है यानी यह एक चक्र या गोले जैसा है जो लगातार धीमी गति से घूमता रहता है, इसीलिए हमारी घड़ियाँ गोल होती हैं . समय के चक्रीय होने का प्रमुख कारण हमारे सभी आकाशीय ग्रहोँ आदि का गोल आकार व गोल घूमना है. ज्यादा जानने के लिए यहाँ क्लिक करें http://lekhagar.blogspot.in/2011/09/what-is-scientific-basis-of-forcasting.html

अब वृत्त या गोल आकृति की एक खासियत होती है कि अगर उसके किसी भी बिंदु को सर्वोच्च बिंदु मान लिया जाए तो ठीक 180 अंश बाद उसका निम्नतम बिंदु होगा. इस तरह समय रूपी निरंतर चलते झूले पर सवार व्यक्ति अगर कुछ न भी करे, तो भी एक समय बाद वह उत्थान से पतन व पतन से उत्थान की ओर पहुँच जाएगा.

इसलिए मैंने कहा कि समय रूपी तकदीर की आधार भुजा को तुरंत बदलना आदमी के वश में नहीं है पर अपना समय अधोगति ( downward) पर है या ऊर्ध्वगति पर (upward), यह जानना संभव है और उसके अनुरूप आप अपनी योजना बना सकते हैं.

यह समय या काल की गति का ही कमाल होता है कि पहले विश्व अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व तेजी आती है और सत्तारूढ़ दल इसका श्रेय अपने अच्छे मैनेजमेंट को देते हैं, और फिर जब समय की गति से अभूतपूर्व मंदी आती है तो सत्तारूढ़ दल उसका दोष विश्वव्यापी मंदी पर डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं.

यह समय की चक्रीय व्यवस्था का ही कमाल है कि राजा – रंक, दिन – रात, तेजी – मंदी, सुशासन – कुशासन, बाढ़ – सूखा, सर्दी – गर्मी, निर्माण-ध्वंस की चक्रीय व्यवस्था हमेशा चलती रही है और भविष्य में भी चलती रहेगी.

तो अगर आप यथावत रहें और कुछ भी परिवर्तन नहीं करें तो भी तकदीर का पहिया चलता रहेगा और आपकी तकदीर बदलेगी। जैसे आप बूढ़े हो जाएंगे या आप के आस पास का रहन सहन व परिवेश बदल जाएगा.

उदाहरण के लिए, गुडगाँव के पास एक गाँव का भेढ़ चराने वाला किसान, साठ साल की उम्र में 5 करोड़ का मालिक हो गया, क्योँकि बिल्डरोँ ने उसकी बंजर जमीन 5 करोड़ में इसलिए खरीदी क्योँकि उसकी जमीन के पास से एक्सप्रेस हाइवे निकल गया था. इसी तरह बिहार में कोसी नदी से सटे गाँव के करोडपति किसान, कोसी की 2007 की बाँध फटने से हुई तबाही में रातोँ – रात भिखारी बन गए .ऐसा ही गुजरात के 2001 के भूकंप के समय हुआ था.

कहने का मतलब यह है कि समय द्वारा भी तकदीर का परिवर्तन होता है पर उसे रोकना या बदलना हमारे वश में नहीं है और उसे नम्रता के साथ स्वीकार करना ही उचित है . अब हम स्थान व पात्र परिवर्तन पर विचार करते हैं .

2 . स्थान द्वारा

स्थान परिवर्तन, तकदीर बदलने का सबसे सहज उपाय है क्योँकि व्यक्ति- परिवर्तन सजीव होने की वजह से कठिन है. तो अगर आप अपनी तकदीर की वर्तमान हालत से संतुष्ट नहीं हैं, तो स्थान परिवर्तन करके देखिए. तबादले वाली नौकरी करने वाले लोग इस बदलाव को अच्छी तरह जानते और समझते हैं. विदेश जाने से होने वाले कायापलट भी इसके उदाहरण हैं.

कुंडली विशेषज्ञ कई बार आपको बताते हैं कि आपका भाग्योदय दूर देश में है. कई बार इसका उलटा भी होता है. अपने जन्मस्थान या देश में अच्छी तरक्की कर चुके लोग जब अन्य प्रदेशों या विदेश में पैर फैलाते हैं तो उन्हें घाटा शुरू हो जाता है. मैंने स्वयं कई लोगोँ को तकदीर में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए, स्थान परिवर्तन की सलाह दी है.

निसंतान व्यक्ति जो संतान के लिए अनेक उपाय करते हैं, उनके लिए स्थान परिवर्तन का उपाय अक्सर कारगर होता है, ख़ास तौर पर यदि स्थान परिवर्तन सहज रूप से हो रहा हो, जैसे नौकरी में तबादला. इसका एक स्पष्ट कारण भी है कि जिस बच्चे को जिस शहर या मकान या अस्पताल में पैदा होना है, वहां आप को जाना ही पडेगा.

धन कमाने के लिए स्थान परिवर्तन के लिए ज्यादातर लोग तैयार रहते हैं . बिहार से अन्य प्रदेशोँ में जाने वाले श्रमिक, खाड़ी देशोँ में पैसा कमाने जाने वाले, विदेशोँ में व्यवसाय के लिए जाने वाले लोग इसका उदाहरण हैं.

पढ़ने के लिए घर से दूर जाना पुराने ज़माने से हो ता आ रहा है और उससे भी तकदीर मेँ बदलाव होता है। सेहत खराब होने पर या इलाज के लिए बाहर जाना स्थान परिवर्तन द्वारा तकदीर बदलने का उदाहरण है. इसका एक अन्य उदाहरण भी है. जिस तरह हमारे जन्म का स्थान निश्चित होता है उसी तरह मरने की जगह पर भी व्यक्ति नियत समय पर अवश्य पहुंचता है.


कैसे जाने कि तकदीर परिवर्तन सुखद होगा या दुखद ?

पिछले लेख में मैंने देश, काल व पात्र की विस्तार से चर्चा की थी. अब मैं आपको कुछ कसौटियां दूंगा जिन्हें आप प्रयोग करके यह जान सकेंगे कि स्थान परिवर्तन से हमारी तकदीर में सुखद परिवर्तन होगा या दुखद.

ज्योतिष के अनुसार, यदि आप अपने वर्तमान स्थान पर पहले से ही सुख शान्ति पूर्वक रह रहे हैं और बिना आपके प्रयास से, स्वत: स्थान परिवर्तन का योग, सरल, सहज व स्वाभाविक रूप से बनता है तो ऐसा स्थान परिवर्तन आपको और तरक्की देगा और उसे स्वीकार कर लेना चाहिए. इसका एक और तर्क भी है. कई बार वर्तमान स्थान जो आपके लिए अभी तक अच्छा रहा है, उसके अशांत होने का समय आ चुका होता है और समय आपको उस से बचाने के लिए स्थान परिवर्तन का योग बनाता है. ऐसे योग को अस्वीकार करने के बाद, आपको वर्तमान स्थान दिनो दिन पीड़ादायक लगने लगेगा.

सहज स्थान परिवर्तन का योग अगर बहुत समय तक दुर्भाग्य से परेशान रहने के बाद बने तो ऐसा योग अवश्य ही सुख शांतिकारक होता है.

अगर आप एक ही स्थान पर कई वर्ष सुख शान्ति से रहे हैं, और फिर कुछ महीने में ही आपकी शान्ति भंग हो चुकने के बाद, गंदे तरीके से स्थान परिवर्तन (धमकी या षड्यंत्र द्वारा) का योग बनना, आपके दुर्भाग्य आरम्भ होने का सूचक है. लेकिन फिर भी स्थान परिवर्तन स्वीकार कर लेना उचित है क्योँकि न करना दुर्भाग्य को और प्रबल कर देगा . स्थान परिवर्तन के कर्म द्वारा दुर्भाग्य का एक अंश समाप्त हो जाता है और उसका दबाव नहीं रहता है.

कई बार स्थान परिवर्तन परिवार में नए सदस्य के आगमन (शिशु जन्म या विवाह) या पुराने सदस्य के विदा होने (मृत्यु, विवाह, तलाक, बंटवारा आदि) के कारण भी होता है और इनका सुखद या दुखद होना इनके कारण के अनुसार होता है.

अब हम तकदीर के बदलने के तीसरे कारण पात्र या व्यक्ति के बारे में चर्चा करेंगे.

3. व्यक्तियोँ द्वारा परिवर्तन

तकदीर बदलने का तीसरा और आख़िरी तरीका सजीव व्यक्तियोँ की संगति द्वारा है. अच्छी तकदीर वाले व्यक्ति या उनके द्वारा चलाए जाने वाले संस्थान से जुड़ने से आपकी तकदीर अच्छी हो सकती है और इसका उलटा भी सही है. जैसे चुम्बकीय लोहे के साथ रहने से चुम्बक का कुछ प्रभाव सादे लोहे में आ जाता है, उसी तरह भाग्यशाली व्यक्ति या संस्था के साथ जुड़ने से आप भाग्यशाली व दुर्भाग्यग्रस्त व्यक्ति व उनकी संस्था के साथ जुड़ने से आप दुर्भाग्यग्रस्त हो सकते हैं. विजय माल्या की दुर्भाग्यग्रस्त कम्पनी किंगफिशर एयरलाइन से जो भी जुड़ेगा उसकी दिक्कतें बढनी तय हैं.

लेकिन यह पूरी तरह से आपके हाथ में नहीं है. कारण यह है कि प्रकृति के नियमों के तहत, भाग्यशाली व्यक्ति के साथ समुचित भाग्यशाली व्यक्ति ही लम्बे समय के लिए ,साथ जुड़ सकता है. इसी तरह दुर्भाग्यग्रस्त व्यक्ति , दुर्भाग्यग्रस्त व्यक्ति या संस्था से जुड़ता है.

सजीव व्यक्ति से मिलना या बिछुड़ना सदैव अपने हाथ में नहीं होता है . शादी, तलाक , व्यवसाय , जन्म , मृत्यु आदि विभिन्न ऐसे कारण हैं जो आपके नियंत्रण में नहीं होते हैं ,पर जिनके कारण आप सजीव व्यक्तियोँ से मिलते , बिछुड़ते रहते हैं , और इन की वजह से आपकी तकदीर में परिवर्तन आते रहते हैं .

स्थान परिवर्तन से सुखद या दुखद परिवर्तन जिस तरह से घटित होते हैं , उसी तरह व्यक्ति परिवर्तन भी सुख या दुःख लाते हैं . कोई नया व्यक्ति, आप से किस प्रकार और किन हालात में जुडा और उससे पहली बार मिलने के बाद आपका मन प्रसन्न हुआ या दुखी , इससे यह तय होता है कि व्यक्ति या संस्था आपके लिए सुखद रहेगा या दुखद . इसमें मुख्य भूमिका विचारोँ के मिलने की होती है पर बिना विचार सम्प्रेषण के भी यह तय हो सकता है जैसे नवजात शिशु के आगमन पर होता है.

अगर आप को किसी संस्था में नौकरी या व्यावसायिक अवसर सहज रूप में , बिना किसी व्यवधान के मिला है, तो वह आपके लिए सुखद और अगर बहुत देरी व कष्ट व व्यवधान के बाद मिला है , तो वह आंतरिक रूप से आपके लिए दुखद ही रहेगा . यही बात बच्चे के जन्म के साथ , शादी- विवाह , स्कूल -कालेज के प्रवेश , रोग और मुकदमें में डाक्टर या वकील ढूढने पर भी लागू होती है .

ऊपर मैंने लिखा है कि समय , देश व पात्र को भी प्रभावित करता है . अच्छे समय के वक्त आपको अच्छा स्थान व अच्छे संपर्क मिल जाते हैं और खराब समय में आप को खराब स्थान व व्यक्ति मिल जाते हैं . मेरा अनुभव यह है कि, जब हम अच्छे समय से बुरे समय में प्रवेश करने लगते हैं , उस वक्त मिलने वाले स्थान व व्यक्ति खराब होते हैं , और जब हमारा वक्त अच्छा आने वाला होता है , तब अच्छे स्थान व अच्छे व्यक्ति अपने आप मिलने लगते हैं .

अक्सर लोग वास्तु शास्त्र द्वारा तकदीर बदलने की बात करते हैं . वास्तविकता यही है कि अच्छे वक्त में आप को जो शहर या मकान मिलता है , वह अच्छा ही होता है और वास्तु की कसौटी पर भी सही होता है . लेकिन अगर आप का वक्त सही नहीं है , तो या तो आप मजबूरी में गलत वास्तु के मकान में रहने लगते हैं या आप किसी कारण से सही वास्तु के मकान में टिक ही नहीं पाते हैं .

तकदीर का ऊँट किस करवट बैठेगा , यह आप अपने शरीर लक्षणों से भी ज्ञात कर सकते हैं . जिस जगह पहुँच कर आप का रहना , खाना , सोना सब हराम हो जाए , वह जगह देखने में या अन्य लोगों की नज़र में कितनी ही अच्छी हो , वह आप के लिए लम्बी अवधि में हानिकर ही होगी . और अगर इसका उलटा हो जाए, तो वह जगह सुखदायक होगी .

यही कसौटी व्यक्ति के साथ भी लागू होती है. अगर किसी नए व्यक्ति के साथ जुड़ने के बाद आपकी चिंता – फिक्र बढ़ जाती है , खाना , सोना अस्त व्यस्त हो जाता है , तो यह व्यक्ति लम्बी अवधि में आपके लिए दुर्भाग्यकारक ही होगा . हो सकता कि वह व्यक्ति ऊंचे पद पर होने से आपको कुछ प्रत्यक्ष लाभ देता दिखे , लेकिन वह आपको स्थायी रूप से रोगग्रस्त करके, आपको कुल मिलाकर हानि ही देगा .

अनुभव के आधार पर मैंने तकदीर में बदलाव के जो तरीके पाए , वह मैंने आपके साथ बांटे हैं . असल में , कुंडली द्वारा ज्योतिषी गणना कर के दो तीन विकल्पों पर पहुंचता है और उस समय उनमें से एक विकल्प चुनने में देश , काल और पात्र की तकदीर बदलने वाली कसौटियां काम आती हैं . जो ज्योतिषी इन कसौटियों को नहीं जानते हैं या गणना के बाद इन्हें इस्तेमाल नहीं करते हैं , उनकी भविष्यवाणियाँ अक्सर गलत हो जाती हैं . सही कुंडली से गणना व देश ,काल व पात्र की कसौटी पर कसी भविष्यवाणी अचूक ही होती हैं .


हम सब समय के हाथ की कठपुतली हैं …

यह लेख फरवरी 2014 में लोकसभा और दिल्ली विधान सभा के पहले चुनाव के बाद लिखा गया था …और इसमें भविष्यवाणी की गयी थी की दिल्ली में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कोई भी बने , वह राजा की तरह ही रहेगा .

अक्टूबर 2016 में अरविन्द केजरीवाल और नरेंद्र मोदी जी के बीच राजसत्ता के बंटवारे पर जंग छिड़ी रही , किरण बेदी पुड्डुचेरी की राज्यपाल बन चुकी थीं और अन्ना हज़ारे अपनी आत्मकथात्मक फिल्म के प्रमोशन में व्यस्त थे …

अब इस लेख को पढ़िए …

February 8, 2014

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ..

हिंदी में पढ़िए

सन 2007 से 2009 तक शनि सूर्य की राशि सिंह में था . सूर्य और शनि नॉर्थ और साउथ पोल जितने अलग माने जाते हैं . एक उजाले (गोरे) , गर्मी ,सत्ता और पराक्रम का स्थिर प्रतीक तो दूसरा अँधेरे ( कालेपन) , बियाबान सौर सीमा की सुदूर परिधि पर एक चौकीदार की तरह 140 करोड़ किमी की रेडियस पर अथक परिक्रमा करने वाला , प्रजा ,श्रम व सत्ताहीनता का प्रतीक ठंडा ग्रह .

लेकिन सन 2007 में सितम्बर 2009 तक के लिए, ऐसा ही शनि , सूर्य की अपनी इकलौती राजमहल जैसी राशि सिंह में प्रवेश कर गया था , जो 30 साल में एक ही बार होता है . यह समय शनि के राजा बनने , जनक्रान्ति होने का होता है .

अगर आप को विश्वास नहीं आता तो 30 साल पहले 1977 में हुई कांग्रेस और इंदिरा गांधी की हार याद कीजिए जिसे जयप्रकाश नारायण जी ने दूसरी आज़ादी कहा था और उससे भी 30 साल पहले देश की आज़ादी के बारे में सोचिए .

यदि ऐसे समय में विश्व में सूर्य की तरह चमकने वाले अमेरिका में चुनाव हो जाएं तो क्या होगा ? ऐसा योग पहली बार बना था और व्हाईट हाउस पर एक शनि का कब्जा हो गया .

” अमरीकी राजनीति के आसमान में अचानक से एक सितारा चमकने लगा. चमक ऐसी कि कैलिफ़ोर्निया से क़ाहिरा तक, बॉस्टन से बीजिंग तक, ड्रॉइंग रूम और गलियों में, गांवों और शहरों में, संसद और कारख़ानों में लोग उसकी बातें करने लगे. नाम था ओबामा. लेकिन वो नाम कुछ भी हो सकता था- उम्मीद, भरोसा, सिद्धांत, ईमान और शायद सत्य भी. राजनीति में ये शब्द मायने भी रख सकते हैं. वो एहसास ही कुछ अलग सा था.

वो कहानियां सुनाता था, लहरों के ख़िलाफ़ तैरने की बात करता था. चेहरे पर चमक थी, हेमलिन शहर के बांसुरीवादक की तरह हज़ारों की भीड़ को अपने पीछे खींचता और मंत्रमुग्ध लोग तैयार रहते उसके साथ कहीं भी जाने को. लड़कियां उसे सेक्सी कहती थीं, बुद्धिजीवी उसे दूरदर्शी कहते थे, बच्चे अचानक से सुपरमैन और स्पाइडरमैन को छोड़कर ओबामा बनना चाहते थे. अमरीका ने जॉन एफ़ कैनेडी को देखा था, बिल क्लिंटन को देखा था लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं देखा था.

20 जनवरी 2009 को वाशिंगटन की एक कंपकपाती सर्द सुबह नेशनल मॉल पर हज़ारों की भीड़ में मैं भी गवाह था उन पलों का जब उस बांसुरीवादक ने वादा किया अमरीका से और दुनिया से एक नई शुरूआत का, एक नई यात्रा का. ” (from BBC Hindi)

फिर 2011 से 2014 तक शनि तुला राशि में . प्रजा और प्रजातंत्र का मौलिक ग्रह यदि अपनी उच्च राशि में आ जाए तो क्या होना चाहिए ? विश्व भर में वास्तविक प्रजातंत्र की मांग ने जोर पकड़ लिया , बड़े बड़े राजा धूल चाट गए , अकड़ू नेता प्रजाभक्त होने लगे . 2012 में ओबामा फिर चुनाव जीत गए और 2013 में दिल्ली पर केजरीवाल ने कब्जा जमा लिया .

ऐसे समय में जनता की भावनाएं निम्न प्रकार व्यक्त होती हैं ..

सदियो की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज् पहन इठलाती है।

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ………..

जनता? हां, मिट्टी की अबोध् मूर्ती वही,

जाड़े पाले की कसक सदा सहने वाली,

जब अंग-अंग मे लगे सांप हो चूस रहे,

तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।

लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते है,

जनता जब कोपकुल हो भृकुटी चढ़ाती है,

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुन्कारो से महलो की नीव उखड जाती,

सांसो के बल से ताज हवा मे उडता है,

जनता की रोके राह समय मे ताब कहां?

वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुडता है।

सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,

120 कोटि हित सिहासन तैयार करो,

अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,

120 कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिये तु किसे ढूंढता है मूरख,

मन्दिरो, राजप्रासदो मे, तहखानो मे,

देवता कही सड़कों पर मिट्टी तोड रहे,

देवता मिलेंगे खेतो मे खलिहानो मे।

फ़ावडे और हल राजदण्ड बनने को है,

धुसरता सोने से श्रृंगार सजाती है,

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिहासन खाली करो कि जनता आती है।

( रामधारी सिंह ‘दिनकर ‘)

लेकिन हर सुखद कथा का अंत होता है .

हिंदी में पढ़िए

” अचानक से यू-ट्यूब पर पांच साल पुराने ओबामा दिखे. किसी मनपसंद पुरानी फ़िल्म की तरह . मैंने उनके कुछ भाषणों को सुना और लगा जैसे हॉलीवुड के किसी कैरेक्टर को देख रहा हूं जो ओबामा की भूमिका निभा रहा है.

जो ओबामा इन दिनों मुझे दिखते हैं वो तो पुराने ओबामा की दीवार पर टंगी पीली पड़ती हुई ब्लैक ऐंड व्हाइट तस्वीर की तरह नज़र आते हैं. बालों में सफ़ेदी आ गई है, चेहरे की चमक गायब है, भाषण उबाऊ हो रहे हैं, ओबामा हमेशा थके-थके नज़र आते हैं.

उनकी लोकप्रियता आधी रह गई है और हर नए सर्वे में नीचे ही जा रही है. बांसुरीवादक के पीछे चलने वाली भीड़ छंट सी गई है.

यू ट्यूब के भाषणों को मैंने फिर से देखा और बात कुछ हद तक समझ में आई.

ओबामा ने जो कहानियां सुनानी शुरू की थीं, दुनिया ने बरसों से वो कहानियां नहीं सुनी थीं. लेकिन व्हाइट हाउस में घुसने के बाद वो कहानियां उन्होंने अधूरी छोड़ दी हैं. बॉलीवुड की फ़िल्मों की तरह पुरानी कहानियां ही फिर से रीसाईकिल होने लगीं.

ओबामा ने बंदूक़ ख़त्म करने की बात की थी, आज हर दूसरे दिन कोई सनकी स्कूली बच्चों को बंदूक़ का निशाना बना रहा होता है.

वॉल स्ट्रीट के जिन गुंडों को ख़त्म करने की बात कही थी उन्होंने, वही आज फिर से दुनिया से हफ़्ता वसूली कर रहे हैं.

अमीरी-ग़रीबी की खाई पहले से ज़्यादा बड़ी हो गई है. जिस दुनिया को उन्होंने अमरीकन ड्रीम में हिस्सा देने का वादा किया था, वो दुनिया आज भी अमरीकी आप्रवासन नियमों के दीवार से सिर टकरा कर ज़ख़्मी हो रही है.

नायकों और महानायकों की कहानियां ज़रूरी होती हैं क्योंकि वो नींव बनती हैं आने वाले कल की. और ज़रूरी होता है कि वो कहानियां पूरी की जाएं.

शायद अपनी कहानी अभी तक पूरी नहीं कह पाने की झुंझलाहट है उनके चेहरे पर. शायद बंटे हुए अमरीका को एक नहीं कर पाने की हताशा है उनके भाषणों में “.

राजमहल में शनि के निवास की कथा अक्टूबर 2014 में समाप्त होने वाली है . अस्त हुए सूर्य वापस उदय होंगे . पुराने राजा फिर वापस आयेंगे और नयी शनि कथा के लिए 2037 तक इन्तजार करना होगा .

अच्छा है कि भारत के आम चुनाव इसके पहले ही हैं और बुरा यह है कि चाहे जो भी राजा चुना जाए , वह पुराने राजा जैसा ही होगा क्योंकि अक्टूबर 2014 के बाद पुराने सूर्य टाइप के ही राजा का योग है !

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